चंबल का असली शेर.. सुनिए 12वीं फेल की अनकही कहानी !
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चंबल का असली शेर.. सुनिए 12वीं फेल की अनकही कहानी !

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12th FAIL :

चंबल के साधारण लड़के के आईपीएस बनने की कहानी विक्रांत मैसी ने अपनी अदाकारी से सबको आकर्षित किया…..

@siddharth

  • अगर आपके अंदर एक जुनून और मेहनत करने का जोश और जज्बा है तो आप अपनी कामयाबी का सफर खुद तय कर सकते हैं। फिर परिस्थिति चाहे कितनी भी विपरीत और गंभीर क्यों ना हो। हमारे आज के पीढ़ी के युवाओं को यही संदेश देती है ,विधु विनोद चोपड़ा की फिल्म ’12th फेल’. जो की 27 अक्टूबर 2023 को सिनेमाघरों में रिलीज होने के लिए तैयार है।
  • यह फिल्म आईपीएस अधिकारी मनोज कुमार शर्मा की कहानी पर आधारित है ,जो साल 2005 बैच के मुंबई कैडर के एक अधिकारी हैं। इस फिल्म में विक्रांत मैसी के साथ मेधा शंकर अंशुमन पुष्कर अनंत जोशी हरीश खन्ना और संजय बिश्नोई जैसे बेहतरीन कलाकार अपनी अदाकारी के साथ नजर आएंगे।
  • विधु विनोद चोपड़ा को कौन नहीं जानता वह एक बेहतरीन फिल्म मेकर हैं और उन्होंने यह बात एक बार फिर से साबित की है । ’12th फेल’ का हर एक ट्रैक अपने आप में एक कहानी है । इनकी अब तक कुछ बेहतरीन फिल्में जैसे कि ‘मुन्ना भाई एमबीबीएस’ ‘लगे रहो मुन्ना भाई‘ और ‘3 इडियट्स‘ जैसी सफल फिल्में हैं, यह लिस्ट यही तक नहीं है उनके फिल्म के लिस्ट में ‘खामोश’ ‘परिंदा’ और ‘1942 ए लव स्टोरी’ जैसी सुंदर फिल्में शुमार है। अब अपनी फिल्म ’12th फेल’ से उन्होंने फिर से अपना निर्देशकीय हुनर दिखाया है। वह शहर से निकाल कर मध्य प्रदेश के बिहड गांव की कहानी लेकर आए हैं। इस बार विधु विनोद ने इतनी प्रेरणादायक और भाव विभोर करने वाली फिल्म को लेकर आए हैं, जिसे देखकर दर्शकों की आंखें तो भर ही आइए, साथ में युवाओं में एक अलग ही उत्साह देखने को मिला। लोगों की तालियों से सिनेमा घरों में एक अलग ही गूंज सुनाई दे रही थी।
  • फिल्म का मुख्य सर यही है कि “हारा वही है जो लड़ा नहीं है” यह कहानी है चंबल के ही एक बड़े आईपीएस अधिकारी मनोज कुमार शर्मा की जिनका पूरा परिवार चंबल में रहता है। पिता की नौकरी जाने के बाद घर की माली हालत खराब चल रही थी, यहां तक की दो वक्त की रोटी के लिए भी जाद्दो जहद करनी पड़ती थी। छोटे से गांव के लड़के मनोज का एक ही ख्वाब होता है कि, जैसे तैसे 12वीं पास करके उसे चपरासी की नौकरी मिल जाए, लेकिन इसी बीच उसकी मुलाकात एक आईपीएस अधिकारी से होती है जिनकी ईमानदारी उसे इस कदर प्रभावित कर जाती है कि उसकी जिंदगी की दिशा ही बदल जाती है। जिंदगी में पहली बार उसे किसी ने कहा कि ‘चीटिंग करना गलत है ‘ वह इस बात को गांठ बांध लेता है। लेकिन मनोज 12वीं की परीक्षा में फेल हो जाता है। दूसरी बार वह थर्ड डिवीजन से पास होता है और स्नातक करता है। और दादी की पूरी जमा पूंजी को साथ लेकर पीसीएस की तैयारी करने के लिए वह ग्वालियर निकल जाता है। लेकिन मनोज के जिंदगी का पड़ाव इतना आसान नहीं था। जिंदगी उसकी परीक्षा लेने की ठान चुकी थी और उसका यह सफर बेहद कठिन होता चला जा रहा था और वह इसी के साथ दिल्ली आ जाता है,जहां वह संघ लोक सेवा आयोग की तैयारी करता है। लेकिन क्या वह अधिकारी बनने के अपने ख्वाब को पूरा कर पाएगा? या जिंदगी के आगे हार जाएगा? यह फिल्म इसी प्रश्न का उत्तर देती है….

फिल्म के मुख्य अदायकी की बात करें तो ’12th फेल’ फिल्म की पूरी जिम्मेदारी विक्रांत मैसी जिन्होनें मनोज कुमार शर्मा का मुख्य किरदार निभाया है। उन्होंने बड़ी ही शिद्दत से अपने इस किरदार को जिया है। चंबल घाटी के बीहड़ गांव की पृष्ठभूमि से आया एक डरा,सहमा और अपने सपनों की तलाश करता साधारण सा लड़का मनोज के किरदार को उन्होंने बहुत ही बखूबी से निभाया है। यह फिल्म देखकर आप विक्रांत मैसी की अदाएकी के कायल हो जाएंगे, वही मेधा शंकर जो कि मनोज की जीवन संगिनी के रूप में एक अहम हिस्सा हैं अपने किरदार को बहुत ही बढ़िया तरीके से पेश किया है। फिल्म में जितने भी कलाकार हैं सभी ने अपने किरदार के हिसाब से बड़ी ही उम्दा तरीके से काम किया है रंगराजन राम बद्रन की अगुवाई में की गई सिनेमैटोग्राफी भी कमाल की है। फिल्म में चंबल के गांव और दिल्ली के मुखर्जी नगर की आत्मा को जिस अंदाज में रंगराजन ने पर्दे पर दिखाया है वह काफी काबिले तारीफ है।

विधु विनोद चोपड़ा इस फिल्म के निर्माता और निर्देशक दोनों ही हैं। उन्होंने इस फिल्म को जिस तरह से अपने जहां में तस्वीर बनाई थी, ठीक उसी तरह पर्दे पर भी उतारा है। उन्होंने फिल्म के सभी स्टार कास्ट से उनके किरदार के हिसाब से बखूबी काम लिया है। सभी किरदार का स्क्रीन टाइम उन्होंने बहुत ही अच्छे से संभाला है उन्होंने फिल्म की कहानी में जो लव एंगल डाला है,वह काफी रोमांचक और बेहतरीन है। फिल्म की सफलता का सबसे बड़ा कारण यह है कि इसमें सब कुछ बड़े ही प्राकृतिक तरीके से दिखाया गया है। कहानी को साधारण तरीके से ही लेकिन काफी मनोरंजन से परिपूर्ण किया गया है। विकास दिव्यकीर्ति भी फिल्म में नजर आते दिखेंगे जिससे फिल्म और भी ज्यादा नेचुरल और वास्तविक लगती है।

मनोज कुमार शर्मा के रोल में विक्रांत मैसी ने क्या बेहतरीन और दमदार किरदार निभाया है फाड़ के रख दिया…. है। साधारण सा दिखने वाला लड़का जो की छोटे-छोटे रोल करता नजर आता था, सिनेमा घरों में आग लगा दिया। विक्रांत की जितनी तारीफ करो कम है। उनको फिल्म में देखकर यही लग रहा था कि, आईपीएस मनोज कुमार की ही वास्तविक जीवन की कहानी चल रही है। उनके अदाकारी में इतनी सच्चाई और लीनता दिखाई देती है कि मानव मनोज के अवतार में ही सब चल रहा है। उनके अभिनय कुशलता का उदाहरण देने के लिए किसी एक सीन को बताना बेईमानी होगी। उन्होंने हर एक सीन में अपनी जान डाली है। मनोज के यूपीएससी सीनियर के रोल में अंशुमान पुष्कर का भी काफी अच्छा रोल है।

फिल्म काफी भावनात्मकता से परिपूर्ण है। बहुत बार आंसू छलक जाते हैं। फिल्म में साउंड का इस्तेमाल विधु ने काफी अच्छे से किया है। फिल्म में रंगराजन ने मुखर्जी नगर की गलियों को और भी जीवंत कर दिया है। संघ लोक सेवा आयोग के बाहर और अंदर के दृश्य उनकी कलात्मकता का नमूना है।विधु ने जसविंदर के साथ मिलकर फिल्म का संकलन खुद ही किया है। और इसमें दिक्कत वहां आती है, जहां वह मनोज की लाचारी दिखाने के लिए काफी लंबा समय लेते हैं।
फिल्म की संगीत की बात करें तो फिल्म का संगीत कमजोर रहा है। विक्रांत मैसी और श्रद्धा की जोड़ी को लोगों ने खूब सराहा है खूब प्यार दिया। उसके अलावा फिल्म में विकास दिव्यकीर्ति को भी देखना काफी अच्छा एक्सपीरियंस रहा। विकास दिव्यकीर्ति जैसा ही कोई होगा जो कि आइएस की नौकरी छोड़ दूसरों को आइएस बनाने की ठाने बैठे हैं। काश कोई उनकी भी बायोपिक बनाए तो फिल्म कमाल की सफल होगी….

फिल्म के अन्य कलाकारों ने भी फिल्म को सफल बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। अंशुमन पुष्कर के किरदार का आईएस न बन पाने पर ,वही मुखर्जी नगर में ही चाय की दुकान लगाकर दूसरों की मदद करने का जज्बा दिल को छू गया। इस किरदार में अंशुमन के भीतर का कलाकार अपनी पूरी शिद्दत के साथ बड़े पर्दे पर दिखता है। मनोज शर्मा के जीवन में देवदूत बनकर आने वाले पीडब्ल्यूडी ठेकेदार के बेटे के किरदार में कटहला वाले अनंत जोशी का काम भी काफी अच्छा रहा। मनोज के पिता के रोल में हरीश खन्ना ने इस किरदार की ईमानदारी के गुमान और फिर अपनी मां को खो देने के बाद भ्रष्टाचार के आगे घुटने टेकने को तैयार हो जाने की मजबूरी को बहुत ही बढ़िया तरीके से पर्दे पर पेश किया है।

’12th फेल’ एक ऐसी फिल्म है जिसे जरूर देखी जानी चाहिए। इसे आप टॉप क्लास के फिल्मों की कैटेगरी में रख सकते हैं । अपने 147 मिनट के टाइम में फिल्म का हर सीन आपको काफी प्रभावित करेगा और प्रेरित भी, किरदार के मामले में मैसी ने अपने किरदार को पूरे आत्मविश्वास के साथ निभाया है। फिल्म में हर तरह का किरदार दिखा है चाहे वह गुस्सा का हो या दृढ़ निश्चय का हो या न्याय करने का हो।

प्रियांशु चटर्जी ने डीसीपी के रूप में अपनी छोटी सी भूमिका में छाप छोड़ी है। फिल्म की कहानी बड़े ही सहज और सरल भाव में बहती चली जाती है। यह फिल्म एपीजे अब्दुल कलाम और वीआर अंबेडकर जैसे दिग्गजों को आइडियल मानने वालों की याद दिलाती है।

फिल्म इस बात पर भी बड़ी बारीकी से रोशनी डालती है कि क्यों भ्रष्ट राजनेता चाहते हैं कि, समाज के युवा मूर्ख बन रहे ताकि उन्हें दबाया जा सके और उन पर शासन किया जा सके।

मनोज की गुमराह जवानी, सही गलत का पता नहीं होना उसके संघर्ष और हर बार शून्य से शुरुआत करने की वास्तविक भावना को बड़े ही दिलचस्प तरीके से दिखाया है दर्शक खुद को मनोज की सफलता या असफलता में शामिल महसूस करेंगे, जब वह यूपीएससी के आखिरी चरण में इंटरव्यू के लिए जाता है तो पर्दे का तनाव आपके जहन में भी बढ़ जाता है ऐसा पर्दे पर दिखाया गया है। शांत माहौल और बैकग्राउंड स्कोर आप अपनी सांसों में भी महसूस कर सकते हैं। यह फिल्म देखने के बाद मन में यही एहसास हुआ कि अगर यह कुछ साल पहले आई होती तो इसे देखकर हममें से एक कोई जरूर आईएएस की तैयारी कर रहा होता। यह फिल्म आपको रुलाती भी है साथ ही साथ आपको मोटिवेट भी करती है। और मनोज के साथ एक ऐसे सफर में लेकर जाती है जो काफी शानदार है। पहले हाफ में फिल्म आपको बांध लेती है फिर दूसरे हाफ में मनोज की जिंदगी में एक लड़की आती है तो ऐसा लगता है इसकी क्या जरूरत थी,लेकिन उसकी तो बहुत ही जरूरत थी। यह फिल्म आगे देखने के बाद पता चलता है। यह फिल्म बड़े ही साधारण तरीके से सूट की गई है, ना कोई ग्रैंड सेट ना कोई धूम धड़ाम वाला म्यूजिक, लेकिन फिर भी आपके अंदर तक छू जाती है। यही इस फिल्म की खासियत है।


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